गुकेश की कामयाबी को कमतर बताने की कोशिश

Attempts to undermine Gukesh's success

 नीरज मनजीत

पिछले हफ़्ते से शतरंज की दुनिया में हलचल सी मची हुई है। 18 साल के भारतीय ग्रैंडमास्टर गुकेश डोम्माराजू ने सिंगापुर में मौजूदा चैंपियन चीन के डिंग लिरेन को हराकर वर्ल्ड चैंपियनशिप क्या जीती, उन पर अजीब तरह के इल्ज़ाम लगने लगे। गुकेश शतरंज इतिहास के सबसे कम उम्र के विश्व विजेता हैं। उनके पहले रूसी ग्रैंडमास्टर गैरी कास्पारोव ने 1985 में रूस के ही अनातोली कारपोव को हराकर 22 साल की उम्र में वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती थी।

इस बार गुकेश और डिंग लिरेन के बीच 14 बाजियां खेली गईं। 13 वीं बाज़ी के बाद दोनों खिलाड़ियों का स्कोर बराबर था। अब सारा दारोमदार 14 वीं बाज़ी पर था। बिसात बिछी हुई थी और दोनों तरफ़ से बेहतरीन दिमागी भिड़ंत देखने को मिली। 54 वीं चाल तक मुक़ाबला एक और ड्रा की ओर बढ़ता नज़र आ रहा था, हालाँकि काले मोहरों से खेल रहे गुकेश के पास एक प्यादा ज़्यादा था। इसके अलावा गुकेश का बादशाह और तीनों जुड़े हुए प्यादे बिसात में काफी आगे बढ़ चुके थे, जबकि डिंग लिरेन का बादशाह और दो प्यादे बिल्कुल रक्षात्मक मुद्रा में काफी पीछे थे। चूँकि दोनों के पास एक एक रुक और बिशप भी था, इसलिए बाज़ी का लंबा खिंचना तय था। तभी 55 वीं चाल में डिंग लिरेन ने बहुत बड़ी ग़लती कर दी और अपना रुक ग़लत खाने में डाल दिया। इससे गुकेश को रुक और बिशप लड़ने का बहुत बड़ा मौका मिल गया। अब बादशाह और प्यादों की चालें पूरी तरह गुकेश के पक्ष में थीं। आख़िर दो चालों के बाद डिंग लिरेन ने हार मान ली और गुकेश का नाम विश्व शतरंज के इतिहास में दर्ज़ हो गया।

गुकेश की इस जीत पर पूर्व विश्व विजेता रूस के ग्रैंडमास्टर व्लादिमीर क्रैमनिक ने बड़ी ही तीखी और क़ाबिले ऐतराज प्रतिक्रिया व्यक्त की है। क्रैमनिक ने ट्वीट करके कहा कि “दुःखद। यह उस शतरंज का अंत है, जिसे हम जानते हैं।” क्रैमनिक यहीं नहीं रुके, उन्होंने डिंग लिरेन पर इल्ज़ाम लगा दिया कि उसने 14 वीं बाज़ी के निर्णायक क्षणों में जानबूझकर ग़लती की है। इधर रूसी शतरंज महासंघ के अध्यक्ष आंद्रेई फिलातोव ने आरोप लगाया कि अंतिम क्षणों में डिंग लिरेन की हरकतें बेहद संदिग्ध थीं। फिलातोव ने अंतर्राष्ट्रीय शतरंज महासंघ से अपील भी की कि इस मामले की पूरी जाँच की जाए, क्योंकि इस ग़लती की वजह से शतरंज को चाहने वाले हतप्रभ और घबराए हुए हैं। फिलातोव का तर्क था कि दुनिया की सबसे बड़ी स्पर्धा में डिंग लिरेन ने जैसी ग़लती की है, वैसी क्लब स्तर का खिलाड़ी भी नहीं करता।

शतरंज के चाहनेवालों को 1972 में अमेरिका के बॉबी फिशर और सोवियत संघ के बोरिस स्पास्की के बीच खेली गई वर्ल्ड चैंपियनशिप जरूर याद होगी। उस वक़्त अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चल रहा शीतयुद्ध चरम पर था और शतरंज की दुनिया पर सोवियत खिलाड़ियों का वर्चस्व था। ऐसे समय में बॉबी फिशर सोवियत खिलाड़ियों को तगड़ी चुनौती देकर चैलेंजर बने थे। इस स्पर्धा में 24 बाज़ियाँ खेली जानी थी, जिसमें पहले 12.5 अंक बनानेवाले खिलाड़ी को चैंपियन बनना था। इस चैंपियनशिप को को सदी का सबसे बड़ा मुक़ाबला कहा जा रहा था और पूरी दुनिया की निग़ाहें मैचों पर टिकी थीं। बॉबी फिशर ने पहली ही बाज़ी के एंड गेम में बचकानी ग़लती कर दी और ड्रा की ओर बढ़ते गेम में फिशर को पराजय झेलना पड़ी थी।

इसके बाद 5वीं बाज़ी में बोरिस स्पास्की ने इतना बड़ी ग़लत चाल चली कि शतरंज की दुनिया हिल गई। सोवियत संघ में तो हाहाकार मच गया। सोवियत शतरंज के अधिकारियों ने अमेरिका पर इल्ज़ाम ठोंक दिया कि वहाँ के वैज्ञानिकों ने स्पास्की की कुर्सी के अंदर ऐसे यंत्र लगा दिए हैं, जिसकी तरंगों का बुरा असर स्पास्की के दिमाग पर पड़ रहा है और उनकी एकाग्रता भंग हो रही है। इल्ज़ाम काफी गंभीर था। अंतर्राष्ट्रीय संघ के अधिकारियों ने कुर्सी की जांच करने के आदेश जारी किए। कुर्सी का पुर्ज़ा पुर्ज़ा खोलकर देखा गया। कुछ भी नहीं मिला।

कुछ दिनों पहले ही दुनिया के नंबर वन शतरंज खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन ने भी वर्ल्ड चैंपियनशिप में खेली गई बाज़ियों को स्तर से कमतर,सुस्त और बेजान बताया था। अंतर्राष्ट्रीय शतरंज महासंघ के अध्यक्ष अर्कडी ड्वोरकोविच ने इन तमाम इल्ज़ामों को परले सिरे से ख़ारिज़ कर दिया है। ड्वोरकोविच ने कहा है कि “इस चैंपियनशिप में बहुत ही अच्छी और रोमांचक बाज़ियाँ खेली गई हैं और बड़े से बड़े खिलाड़ी से भीग़लती  किसी भी वक़्त हो सकती हैं।” गुकेश के मेंटर पूर्व विश्व विजेता विश्वनाथन आनंद ने भी इन आरोपों का बचाव करते हुए कहा है कि “गुकेश ने दबाव के क्षणों में शानदार खेल दिखाया है और वह इस मुक़ाबले में विजेता होने का पूरा हक़दार था। गुकेश बिसात पर आक्रामक तेवर अपनाता है और नौजवान होने के नाते गहन गणना करने, ख़तरा उठाने तथा मिडिल गेम की कठिन परिस्थितियों में कई-कई वेरिएशनों को खंगालकर सही चाल ढूंढ लेने में माहिर है।”

इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि डिंग लिरेन ने संभवतः शतरंज के इतिहास की सबसे बड़ी ग़लती की है, मगर क्रैमनिक और फिलातोव के इल्ज़ाम कतई सही नहीं हैं। आखिर इस स्तर पर कोई भी खिलाड़ी जानबूझकर क्यों ग़लती करना चाहेगा, जबकि उसके देश की प्रतिष्ठा का सवाल हो और उसका विश्व विजेता का ख़िताब दांव पर लगा हो? दरअसल डिंग लिरेन 14 वीं बाज़ी में काफी दबाव में था और टाइम ट्रबल का शिकार था। इस बाज़ी में वह सफेद मोहरों से खेल रहा था, जो कि एक एडवांटेज होता है। उसके साथ दिक़्क़त यह थी कि वह शुरू से ही डिफेंसिव माइंडसेट में था और इस बाज़ी को ड्रा कराने के लिए खेल रहा था। ड्रा होने से मुक़ाबला टाई ब्रेकर में चला जाता और फ़ैसला रैपिड चेस की चार बाज़ियों में होता।

दरअसल डिंग लिरेन रैपिड चेस का मास्टर खिलाड़ी है, जबकि इस श्रेणी में गुकेश 47 वीं रैंक पर है, इसलिए टाई ब्रेकर में लिरेन के जीतने के मौके ज़्यादा थे। लिरेन के इस माइंडसेट को गुकेश ने भाँप लिया था, इसीलिए उसकी रणनीति लिरेन को मानसिक तौर पर थका देने की थी। इस बाज़ी में गुकेश की स्टील जैसी कड़ी और मजबूत मानसिक बुनावट देखी गई। पूरे गेम में उसने लिरेन को दबाव में रखा और आखिर उसे महा-चूक करने पर विवश कर दिया।

जहाँ तक कार्लसन के आरोपों का सवाल है, ऐसा उसने इसलिए कहा, क्योंकि तीसरी बाज़ी के बाद लगातार आठ बाज़ियाँ ड्रा रही थीं। बड़ी स्पर्धाओं में ड्रा बाज़ियों की अधिकता नितांत स्वाभाविक बात है। 1985 में तत्कालीन विश्व विजेता अनातोली कारपोव और चैलेंजर गैरी कास्पारोव के बीच शतरंज इतिहास की सबसे लंबी और बेजान चैंपियनशिप खेली गई थी। उस वक़्त नियम यह था कि पहले छह बाज़ियाँ जीतनेवाला विजेता घोषित कर दिया जाएगा, बाज़ियाँ चाहे जितनी खेलनी पड़ें।

यह स्पर्धा पाँच महीने से भी ज़्यादा चली थी और 48 बाज़ियाँ खेलने के बाद भी नतीजा नहीं निकला था। इन 48 बाज़ियों में 40 बाज़ियाँ बेनतीजा रही थीं, जिनमें 17 लगातार बाज़ियाँ शामिल थीं। 48 बाज़ियों के बाद शतरंज महासंघ के तत्कालीन अध्यक्ष फ्लोरेंसियो कैपोमेनेन्स ने स्पर्धा स्थगित कर दी। उनका तर्क था कि दोनों खिलाड़ी मानसिक तौर पर बुरी तरह थक चुके हैं और लगातार ड्रा बाज़ियों की वजह से स्पर्धा भी नीरस और उबाऊ हो चली है।

सच कहा जाए तो गुकेश भारतीय शतरंज के परिदृश्य में अपार संभावनाएं लेकर आगे आए हैं। अभी तक विश्वनाथन आनंद भारतीय शतरंज खिलाड़ियों के लिए आदर्श प्रेरणास्रोत बने हुए थे। अब आनंद की परंपरा को आगे ले जाने और वैश्विक शतरंज के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में अपने लिए पुख़्ता जगह तैयार करने गुकेश पूरी मजबूती से कटिबद्ध लग रहे हैं। इस किशोरवय खिलाड़ी की उपलब्धियों को कमतर बताने की कोशिशें कामयाब नहीं हो पाएँगी।

 

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